Shattila Ekadashi Vrat Katha | षटतिला एकादशी व्रत कथा –
क्या आप जानते हैं की वर्ष में कम से कम एक बार ऐसी एकादशी आती है जिसमें दशमी एकादशी और द्वादशी यह तीनों ही तिथियां एक साथ होती है और इस संयोग को trisprsa एकादशी कहा जाता है और ऐसे पुण्य में संयोग वाली एकादशी अत्यंत विशेष होती है लेकिन क्यों है यह विशेष चलिए देखते हैं हरे कृष्ण बताया स्मृति अर्थात यदि एकादशी तथा द्वादशी एक ही दिन आती है और रात्रि में त्रयोदशी भी संयुक्त हो जाती है
और अन्य शब्दों में कहें तो एक ही दिन या रात्रि में तीनों दिन संयुक्त हो जाते हैं तो इसे एकादशी कहा जाता है यह दिन पाप नाशक बताया गया है ऐसा ही कुछ हरि भक्ति विलास में भी कहा गया है इस विषय का दृश्य यात्रा के दिन
उपवास करना चाहिए काली महत्वपूर्ण प्रश्न एकादशी इस बार यही रही है 18 जनवरी 2003 को इसका नाम है शर्ट दिलाई काशी और आपको जानकर आश्चर्य होगा की सामान्य रूप से एकादशी के दिन तिल खाना वर्जित होता है लेकिन यही एक ऐसी एकादशी है जिसमें विशेष का तिल ही खाने की महिमा बताई गई है
चलिए इस संदर्भ में एक सुंदर पौराणिक कथा सुनते हैं एक समय युधिष्ठिर महाराज ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा ही जनार्दन मास के कृष्ण पक्ष में कौन सी एकादशी आती है और उसका महत्व क्या है कृपया इस विषय में विस्तारपूर्वक बताएं भगवान श्री कृष्ण ने मंद स्मिथ के साथ पुलिस से मुनि द्वारा दौलत पर ऋषि को कही गई कथा कहना प्रारंभ किया ऋषि ने अति विद्वान पुलिस से मुनि से कहा ही मुनिवर मृत्यु लोक का प्रत्येक प्राणी पाप माय प्रवृत्ति में संलग्न है उसे नर्क की यातना से बचाने के क्या उपाय हैं पुलिस से मुनि ने उत्तर दिया ही महाभारत के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को शातिला एकादशी के नाम से जाना जाता है इस
समय मनुष्य को स्नान करके इंद्रियों को संयम में रखकर एकादशी व्रत का पालन करना चाहिए पौराणिक समय में एक ब्राह्मण रहती थी ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए वह भगवान की आराधना करती थी और व्रत उपवास का पालन करती थी लेकिन कभी भी उसने किसी ब्राह्मण या देवताओं को अन्य का दान नहीं दिया था अनेक यज्ञ और तपस्या के कारण उसका शरीर और जीवन तो शुद्ध हो गया था लेकिन उसने कभी भी अन्य का एक दाना भी किसी को दान में नहीं दिया था इस प्रकार अन्य दान की उपेक्षा करने के कारण उसकी तपस्या अधूरी थी
एक दिन उसकी परीक्षा लेने के लिए भगवान श्री कृष्ण ब्राह्मण के रूप में उसके घर गए और अन्न की भिक्षा मांगी ब्राह्मण के वेश में आए हुए भगवान से पूछा की आप कहां से आए हैं भगवान ने जानबूझकर कुछ नहीं कहा इसलिए क्रोध में आकर उसे ब्राह्मण ने भगवान प्रतीक्षा पत्र में मिट्टी ए गए अपनी तपस्या और व्रत पालन से वह भगवान के धाम तो पहुंच गई लेकिन वहां उसे संपत्ति हैं और कांति हैं एक महल प्राप्त हुआ जहां अन्य की या भोजन की कोई व्यवस्था नहीं थी जब उसे ब्राह्मणी ने ये देखा तो वह क्रोध में आकर भगवान से पूछने लगी ही जनार्दन मैंने सभी व्रत और तपस्या का पालन किया और आपकी उपासना की फिर भी मुझे अन्न का अभाव क्यों मिला
ये सुनकर भगवान ने उत्तर देते हुए कहा ही साध्वी तुम अपने घर लौट जाओ तुम्हें देखने के लिए देवताओं की पटरानिया आएगी उनसे षटतिला एकादशी की महिमा पूछ कर ही तुम दरवाजा खोलना अन्यथा नहीं यह सुनकर ब्राह्मणी वापस चली गई कुछ समय बाद ब्राह्मणी को दरवाजा खोलने के लिए कहा उसी समय ब्राह्मण ने उनसे षटतिला एकादशी की महिमा सुनने को कहा जब देव पत्नियों ने यह महिमा सुनाई तो उसके पक्ष ब्राह्मणी ने दरवाजा खोला और इसे एकादशी का पालन किया जिसके प्रभाव से उसे ब्राह्मण को अपने घर में धन और सौंदर्य प्राप्त हुआ इस प्रकार
मुनि ने कथा की अंत में कहा जो भी व्यक्ति इस अद्भुत षटतिला एकादशी का श्रद्धा पूर्वक पालन करता है उसे वह सभी प्रकार के दरिद्रता आध्यात्मिक मानसिक शारीरिक दुर्भाग्य से मुक्त हो जाता है वास्तव में इस एकादशी का पालन करते हुए दान यज्ञ और तिल के सेवन से व्यक्ति पूर्व जन्म के समस्त पापों से मुक्त हो जाता है और जीवन के अंत में आध्यात्मिक लोक को प्राप्त करता है
उन्होंने आगे बताते हुए इस एकादशी का पालन करने की विधि क्या सुनाई जो इस प्रकार थी एकादशी के दिन पूर्ण पुरुषोत्तम परम भगवान श्री कृष्ण का स्मरण करते हुए भूमि को स्पर्श करने से पहले निकाला हुआ गोबर एकत्रित करके उसमें तिल और कपास मिलाकर 108 पिंड बनाए अपराध क्षमा के लिए श्रीकृष्ण के नाम का उच्चारण करें रात में होम जागरण करके चंदन कपूर और पवित्र भोग द्वारा पद्मश्री श्री हरि की पूजा करें उसके पक्ष भगवान का नाम स्मरण करते हुए पवित्र अग्नि में सीताफल नारियल और अमरूद के साथ 108 पिंडों को भगवान को अर्पित करें
यदि ये फल उपलब्ध ना हो तो इसके स्थान पर सुपारी ले सकते हैं तत्पश्चात ब्राह्मणों की पूजा करके उन्हें जल्द से भरा हुआ पत्र छाता चप्पल और वस्त्र का दान इस दिन तिल का दान देने से व्यक्ति हजारों वर्षों तक स्वर्ग में वास करता है इस दिन विशेष रूप से तिल से स्नान करना तिल का उबटन लगाना तिल का हवन करना तिल डाला हुआ जल पीना तिल का दान करना और तिल का भोजन में प्रयोग करना यह कार्य करने चाहिए और इसी कारण इसे एकादशी एकादशी कहा जाता है की ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाइए स्नान इत्यादि से स्वयं को शुद्ध करके भगवान की मंगला आरती करें या उसका दर्शन करें उसके बाद भगवान श्री हरि के समक्ष हाथ में गंगाजल लें और इस एकादशी व्रत का संकल्प तुलसी देवी को जल अर्पण करें दीपक प्रज्वलित करें और
उनकी कम से कम तीन बार प्रदर्शन करें अब उनके समक्ष बैठकर हर एक कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण हरे हरे राम हरे राम राम हरे हरे इस महामंत्र का अधिक से अधिक मात्रा में जाप करें संपूर्ण दिन हरि कथा का श्रवण करने में और भागवत गीता तथा श्रीमद् भागवत का पठान करते हुए व्यतीत करें इस दिन गेहूं चावल डाल फलियां इत्यादि अन्य युक्त चीजों का सेवन कदापि ना करें अगर आपकी शारीरिक क्षमता सात दे रही है तो संपूर्ण उपवास का पालन करें
और यदि यह संभव नहीं है तो फल दूध फलों का रस एकादशी प्रसाद इत्यादि ले सकते हैं अगले दिन परन के निर्धारित समय पर यानी 7:24 से लेकर 10:53 के बीच में किसी सुयोग्य भ्रम यह वैष्णव को भगवान को अर्पित भोजन प्रसाद खिलाए और अपने क्षमता अनुसार कुछ ना कुछ दानअवश्य करे और अंत में स्वयं परम भगवान श्रीकृष्ण से प्रार्थना करते हुए और उनका स्मरण करते हुए भोजन प्रसाद के साथ षटतिला एकादशी व्रत का स्मरण करें
अब देखिए सिर्फ माघ मास में ही यह एकादशी क्यों आती है जिससे हमारे शास्त्रों में तिल खाने का प्रावधान किया गया है इसका कारण है की यह एकादशी सर्दियों के समय में आती है और ऐसे ठंडे वातावरण में तिल वैसे भी शरीर के लिए स्वास्थ्य प्रदान होते हैं तभी तो हम मकर संक्रांति या उत्तरायण के समय जनवरी में तिल के लड्डू रेवाड़ी इत्यादि चीजें खाते हैं
यही है हमारी वैदिक संस्कृति वैज्ञानिक सुंदरता अगर आप ऐसे ही प्रमाण बहुत तथ्यों से भरे इंटरेस्टिंग उपाय हमेशा देखना चाहते हैं जिसमें अध्यात्म और विज्ञान दोनों का समन्वय हो और जिसमें आपके हर क्यों का जवाब हो तो आपके अपने इस चैनल को सब्सक्राइब करना पहले और अगर यह पोस्ट हमारी अच्छी लगी हो तो इसे लाइक और कॉमेंट जरूर करें
राधे राधे