Shri Premanand Ji Maharaj ke upay

premanad ji maharaj ke upay

मन को वशीभूत करने के अचूक 4 उपाय – Shri Premanand Ji Maharaj ke upay

बिल्कुल यह जीवन की वह दवा है जिससे आप बिल्कुल ठीक हो जाएंगे यदि यह जीवन में उतार ले तो हृदय में लिख लो दिमाग में लिख लो किसी नोटबुक में लिख लो जो आप रोज स्वाध्याय करें बिल्कुल विश्वास मानिए यह चार बातें जो बता रहे हैं यह जीवन की धरोहर है जो आपको दे रहे हैं सदा रहो अलमस्त नाम की धुनि में हो जा मत वाला निरंतर नाम क्या फर्क पड़ता है एक एक शब्द य अमृत है

जीवन का सार हम आपको बता रहे हैं मन से लड़ने की ये युक्तियां है जिससे साधु अपने मन को भगवान में लगाकर शांत करता है जब आप इन चार सूत्रों का प्रयोग करके मन को भाव में ले आएंगे तो यही मन जो आपको रुलाता है यही नचा देगा ये चार बातें बहुत जल्दी मन को प्रभु में लगा दें अगर आप पकड़ पावे ना पकड़ पावे तो भोगे फिर आपका मन आपको जलाए फिर आप रोएंगे चिल्लाए भागेंगे कहां भाग के जाओगे

जो संसार में फंसे हुए जन है वह तो भाग के यहां आ रहे हैं श्री जी की शरण में यदि आप अपने मन को संभाल नहीं पाए तो फिर कहां भाग के जाओगे इन्हीं की शरणागति से तो निर्विकार हुआ जाता है निश्चिंत हुआ जाता है निर्भय हुआ जाता है इनके चरणों को छोड़कर कहां निश्चिंता होगी कहां निर्भयता होगी पहला बिल्कुल यह जीवन की वह दवा है जिससे आप बिल्कुल ठीक हो जाएंगे यदि ये जीवन में उतार ले तो हृदय में लिख लो

दिमाग में लिख लो किसी नोटबुक में लिख लो जो आप रोज स्वाध्याय करें पहला जहां जहां मन जाए जिस वस्तु व्यक्ति स्थान में तत्काल अपने प्रिया प्रीतम की भावना कीजिए य राधा वल्लभ लाल जी क्योंकि यह व्यक्ति पहले भी नहीं था बाद में भी नहीं रहेगा बीच में जो व्यक्ति दिखाई दे रहा है यह व्यक्ति नहीं मेरे प्रभु है वस्तु नहीं मेरे प्रभु है य स्त्री नहीं य प्रभु है यह पुरुष नहीं यह प्रभु है यह पापी नहीं यह प्रभु है यह महात्मा नहीं

यह प्रभु है मान लो हल हो जाएगा दूसरा जहां जहां मन जाए वहां वहां मिथ्या भाव करके य सब माया का विलास राधावल्लभ श्री हरिवंश राधा वल्लभ और मन का एक स्वभाव है जहां हम परिचय उसका ये जान जाते हैं स्वभाव का तो उससे शासन में ले लेते हैं लोग परिचय नहीं जानते जी ही आप जानेंगे भागा ते ही आ जाएगा इसको सेकंड में भी कम समय में अधीन किया जा सकता है और पूरा जन्म लग जाएगा फिर भी अधीन नहीं कर पाओगे

बात को समझिए ये एक सेकंड में विश्व ब्रह्मांड में कहीं भी यदि इसका परिचय है वह तत्काल पहुंच जाएगा वायु भी इसके समान वेगवान नहीं है मन अगर अमेरिका गए हैं आपने वह दृश्य देखा है कोई एरिया महल घर जो भी एक सेकंड के कम हिस्से में वह पहुंच जाएगा ऐसे मन को प्रभु में लगाने के लिए जहां मन जाए और जाना कि गया इतना सावधान साधक होना गया व तत्काल आ जाएगा उसको बुलाना नहीं पड़ेगा वह तत्काल लग जाएगा

राधा वल्लभ श्री हरिवंश राधा वल्लभ श्री हरि राधा वल्लभ हो सकता है पांच बार ना कह पाओ फिर भाग जाए फिर उसे लाना है इसे कहते हैं अभ्यास योग अभ्यास योग युक्त तसा नान्य गाना एक दिन ऐसा आएगा नान्य गामिन यह जाएगा ही नहीं यह नहीं जाएगा फिर दिव्य शाश्वत परम पुरुष की प्राप्ति इसी से हो जाएगी तीसरा हमारे मन में जो सही स्फर आए हो रहे उसका सपोर्ट जरूरी है विरोध विरोध से ही मन केवल काबू में नहीं होता है

सपोर्ट जरूरी है अब सपोर्ट शब्द से कितना मन प्रसन्न हो रहा है हर्षित हो रहा है उस बात का सपोर्ट जो गुरुवाणी शास्त्र संत जनों की वाणी उसके अनुकूल वो बोल रहा है चलो आज हम तुम्हारी बात पूर्ण कर देते हैं वो कहता है मुझे आज मीठा खाने की बहुत इच्छा है ठीक है हम श्री जी को भोग पधरा हैं नाम कीर्तन करते हैं आचमन कराते हैं फिर उसको पा लेते हैं बिल्कुल वह आपको भजन में विरोधी भाव नहीं पैदा करेगा कहीं कहीं मन को सपोर्ट करना है

वह कहीं कहीं शास्त्र सम्मत गुरु आज्ञा के अंतर्गत सपोर्ट जरूरी है जरूरी है बिल्कुल विश्वास मानिए यह चार बातें जो बता रहे हैं यह जीवन की धरोहर है जो आपको दे रहे हैं चौथी बात जो शास्त्र विरुद्ध दोष वाली सलाह दे रहा है बिल्कुल नहीं बिल्कुल नहीं बिल्कुल नहीं जैसे वह जरूरी है जरूरी है सपोर्ट ऐसे बिल्कुल सपोर्ट नहीं बिल्कुल सपोर्ट नहीं बिल्कुल नहीं अब व आपको जलागा जैसे सपोर्ट शब्द से हर्षित हो गया ऐसे बिल्कुल नहीं शब्द से व शकित हो जाएगा

अब आपको उदास कर देगा जब उदास वो होगा तो आप उदास हो जाएंगे कहीं मन नहीं लगेगा आपको लगता है अब तो जीवन बेकार हो गया तो मन लगना ही जीवन है क्या अरे अभी आप समझे नहीं सोहम तव आश्रित मैं प्रियालाल के आश्रित हूं तो तन वांग मनो भीर अगर यह नहीं लग पा रहे तो मैं स्वयं प्रियालाल के आश्रित हूं यह मुझे कैसे भ्रष्ट कर सकता है तनु वांग मनो भर शरीर वाणी और मन यह हम समर्पित कर रहे हैं

तो शरीर वाणी मन यह तीनों धोखा दे रहे हैं शरीर बीमार हो गया है जबान खराब हो गई है मन गलत चिंतन करा रहा तो हमारा बाल बांका भी नहीं कर सकता क्योंकि सोहम तव वासता मैं स्वयं प्रिया जू की शरण में हूं उपासक ये चार बातें नोट कर ले ब बहुत यह जीवन के लिए अत्यंत लाभदायक है जब आपका मन आपको परास्त कर रहा है जला रहा है वह जलन सिर्फ मन को प्राप्त हो रही आपको नहीं आप बिल्कुल दूर हैं

आप दृष्टा है आप साक्षी हैं उसके आप स्वामी है उसके यदि आप स्वीकृति नहीं देंगे तो आपसे पापा चरण नहीं करा पाएगा आपको डरना नहीं कि अब मन में का आ गया क्रोध आ गया अब तो मेरी दुर्गति हो जाएगी बिल्कुल नहीं देखो देखो जरा इस पर विचार करो क्या शरीर को त्याग देने से परम पद मिल जाएगा दुखों की निवृत्ति हो जाएगी क्या निर्विकार आ जाएगी नहीं ऐसे शरीर को नष्ट करने वाले को प्रेत योनि मिलती है

प्रेत योनि महा भयानक कष्ट दई जिसमें वह दरिया के समीप रहते हुए बूंद पानी नहीं पी सकता केवल वायु भक्षण करके व जलता रहता है कितने समय तक इसकी कोई सीमा नहीं है युग युग बीत सकते हैं यह मन जिसको तुमने अपना माना कितनी दुर्गति का रास्ता चयन करा दिया उपासक मस्ती सीख अरे चाहे गृहस्थ हो या विरक्त हो भगवत आश्रित मस्त रहना सीखो सदा रहो अलमस्त नाम की धुनि में हो जा मत वाला निरंतर नाम क्या फर्क पड़ता है

मन सही है या गलत क्या फर्क पड़ता है क्यों क्योंकि मैं स्वयं प्रभु के आश्रित हूं मैं सच्चिदानंद का सच्चिदानंद अंश हूं ना मैं कभी दूषित था ना दूषित हूं ना दूषित रहूंगा और ना सृष्टि में किसी की सामर्थ्य है कि मुझे दूषित कर सके इंद्रिया दूषित हो सकती हैं मन दूषित हो सकता है क्रिया दूषित हो सकती है अब हम प्रभु के बल से इन इंद्रिय मन और शरीर के दोषों का नाश करूंगा ना कि इनके अनुसार चलूंगा यह उपासक का स्वरूप है

व्यथा इंद्रिय प्रम स्वभाव वाली मन प्रम स्वभाव वाला इनके मथ होने पर मनमत नाम है काम का व इनमें बैठ कर के ऐसा प्रम करता है ऐसी व्यथा उत्पन्न करता है कि साधक का तदात्मानं [संगीत] सु महापुरुष यम हीन व्थ ते पुरुषम पुरुष सबब हे पुरुषों में श्रेष्ठ अर्जुन अर्थात वो पुरुषों में श्रेष्ठ पुरुष है जो प्राप्त व्यथा को सह जाता है इंद्रिय मन के द्वारा विकाराम पीड़ा को बिना किसी से राग द्वेष की चुपचाप सह गया ये भगवान की विशेष कृपा पर हमारा मन क्या बुद्धि के साथ सच वाहर आता है

कि जब हमें जो काम सताया लोभ मोह ममता जो भी हमें वह तत्काल मिल गया और हम शांत हो गए तो सौभाग्य समझते हैं दुर्भाग्य है उस उपासक का जो चाहे और उसको प्राप्त हो जाए दुर्भाग्य है उसका सौभाग्यशाली वो है जो चाहे और ना मिले और जलता हुआ सह गया उसे वह चीज मिलेगी जो त्रिभुवन में किसी को किसी साधना से नहीं मिलती यम हीन तेते पुरुषम पुरुष सब सम दुखा सुखा धरम स मतवा कल्प वो अमृत पद का अधिकारी हो गया

वह अमर हो गया अ विनाशी हो गया वह अविनाशी पद में आरूढ़ हो गया जो इस व्यथा को सह गया व्यथा को सहने वाला वही होता है जो व्यथा का दृष्टा बनता है भोगता नहीं तुम दृष्टा हो बात समझिए आप आपने देखा आपका मन गलत चाह कर रहा है य आपने देखा आप में नहीं है मन में है पर कहने को होता है कि मेरे मन में दोष आ गया लेकिन मेरे मन में नहीं वह मेरे में आ गया मैंने स्वीकार कर लिया यही दुर्दशा है

माया के द्वारा की गई इसी का नाम जड़ चेतन ग्रंथि है यही चिज जड़ ग्रंथि है जिसका नाश करते हैं वेदांत के द्वारा भक्ति के द्वारा योग के द्वारा कर्म योग के द्वारा सत्संग के द्वारा शास्त्र स्वाध्याय के द्वारा आपको विविध शास्त्रों का सार पाच मिनट में मिल गया जो जीवन भर प्रयोग किया गया शास्त्र स्वाध्याय करके संतों की कृपा से वो पाच मिनट में मिल गया अगर इससे स्वीकार कर ले तो बहुत जल्दी आप महात्मा बन जाएंगे

चाहे गृहस्थ में हो या विरक्त में महात्मा का संबोधन स्थिति से है बाहरी किसी पद पदवी से नहीं स्थिति होती है उसे महात्मा कहते हैं महात्मा शब्द भगवान के आगे भी लगता महात्मा श्री कृष्ण ऐसा कई बार महाभारत में संबोधन हुआ महापुरुष भगवान को कहते हैं वंदे महापुरुष ते चरण अरविंदम जो भगवान में तन्मय हो गया वह महात्मा जो भगवान में भगवत भाव को प्राप्त कर लिया वह महापुरुष अर्थात भगवान और भगवान के जनों में अभेद स्थिति हो जाती है

अगर यह आज जो चर्चा हो रही इसको आप अपने जीवन में नहीं धारण कर पा रहे तो दुर्भाग्य है जलो ग रोगे परेशान कर देगा तुम्हें मन इसको बहुत बार सुनना एक एक शब्द जीवन का सार हम आपको बता रहे हैं मन से लड़ने की यह युक्तियां है जिससे साधु अपने मन को भगवान में लगाकर शांत करता है जब हमारा मन भगवन में होने लगता है तो उसमें भाव का प्रादुर्भाव हो जाता है फिर यह जो अभाव है इसी से कामनाएं प्रकट होती है

शब्द को पकड़ना मन मन में सुख का अभाव ही भोगों की कामना पैदा करता है मन में भगवत भाव ही निर्विकार की स्थिति प्रदान करता है जब आप इन चार सूत्रों का प्रयोग करके मन को भाव में ले आएंगे तो यही मन जो आपको रुलाता है यही नचा देगा पायो जी पायो मैंने राम रतन धन पायो नाच पड़ोगे की वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु निस दिन बढ़त सवाय रात दिन आनंद बढ़ रहा है सदगुरु ने निहाल कर दिया किसी को ऐसा लगता हो कि हाथ रखने से यह विकार नष्ट हो जाते हैं

आज तक हमने कहीं शास्त्र में नहीं पाया ऐसा कई संतों से ऐसा नहीं पाया सबने उपदेश देकर के कृपा शक्ति दे करके साधन में लगाया और उसको परिपक्व किया उपासक को बलवान बनाया अगर यह आशीर्वाद से होता तो उपदेश ना देकर सबके हाथ माथे पर रख देते भगवान सबका मंगल करें सब निर्विकार हो जाएं कभी ऐसा नहीं हुआ है ना ऐसा हो सकता है हम जब संतों के वचन पर श्रद्धा करते हैं और उसको स्वीकार करके आचरण में लाते हैं

तो वही आशीर्वाद हो गया कि हमारा पुरुषार्थ सार्थक हो गया हमारा प्रयत्न गुरुदेव के वचनों के अनुसार प्रयत्न की शक्ति गुरु कृपा तो आगे जो भक्ति का रंग वह गुरु कृपा मोक्ष जो व गुरु कृपा भगवत साक्षात्कार गुरु कृपा पर उसमें हमारी पूरी शक्ति उनकी आज्ञा पालन में लगी है इसीलिए प्रधान कृपा हमारी हुई हम प्रधान कृपा अपने ने ऊपर नहीं करते और तो सहायक कृपा सब है भगवान की कृपा मानव देह मिला सत्संग मिल रहा है गुरु की कृपा स्वीकार किया मंत्र दिया नाम दिया उपदेश कर रहे हैं

शास्त्र कृपा हमें सुलभ मार्ग भगवत मार्ग उससे नाना प्रकार के बचाव पक्ष की बातें उसमें आसक्त होने की बातें दोनों बताई गई परमार्थ में कैसे आसक्त हुआ जाता है परमार्थ में से बचा जाता है शास्त्र कृपा भी है अपनी कृपा हम नहीं कर पा रहे अपनी कृपा अब हमको इस संसार समुद्र से मुक्त होना है डूबना नहीं इसमें पार जाना है अब मुझे वही करना है जो मेरे गुरुदेव कहते हैं शास्त्र कहता है अब इसके विपरीत नहीं यह अपने ऊपर कृपा हो गई

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